कोरोना के दौर में रचनात्मक पहल।
सिरोही ब्यूरो न्यूज़
रिपोर्ट हरीश दवे
सिरोही | कोरोना वायरस (COVID-19) का संक्रमण सम्पूर्ण विश्व में विकराल रूप लेता जा रहा है जिससे भारत भी अछूता नही है। भारत मे संक्रमित लोगों की संख्या क़रीब एक लाख दस हज़ार के पार हो गई है। दवा उपलब्ध नहीं होने के कारण वर्तमान में इससे बचाव ही एकमात्र उपाय है। जिसके लिए स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा निरंतर दिशानिर्देश जारी किए जा रहे हैं। सरकार मास्क, सोशल डिस्टन्सिग और स्वच्छता के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए अथक प्रयास में जुटी हैl इनमे मास्क पहनना सबसे ज़्यादाज़रूरी है।
राजस्थान सहित कई राज्यों ने सार्वजनिक स्थानो पर मास्क पहनना बाध्यकारी एवं दंडनीय कर दिया है। घर से बाहर निकलने से पहले मास्क लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हो चुका है। अब लॉक डाउन के चौथे चरण में राज्य सरकारों के निर्देश के बाद प्रवासी श्रमिक अपने घरों की ओर परिवार और बच्चों के साथ निकल पड़े है।
भीषण गर्मी मानो सरकार के मास्क पहने जाने के निर्देशों की पालना करते नज़र आती है। तेज धूप के कारण जहां आदमियों ने पगड़ी या रूमाल से सर और मुँह धक रखे है तो वहीं औरतें लूगडी और घूंघट को मास्क बनाए चेहरे ढके हुए दिखते हैं। परंतु उनके साथ वाले अधिकतर बच्चे बिना मास्क के दिखते हैं जैसे कोरोंना को खुली चुनौती दे रहे हो।
बॉर्डर पार कर राजस्थान में प्रवेश करने वाले प्रवासी मजदूरों को "मै भारत" की ओर से राशन के साथ मास्क वितरित कर रहे विवेक शाह एवं अश्वनी शाह ने बच्चों के मास्क नही पहनने के बारे में लोगों से पूछा, तो अधिकतर लोगों के पास कोई युक्तिगत जवाब नहीं था । कुछ का कहना था की “क्या कोरोंना सिर्फ़ उनके बच्चों के मास्क नहीं लगने से फैल रहा है।”
मैं भारत फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष, रितेश शर्मा के अनुसार सरकार द्वारा प्रस्तावित अधिकांश कानून और निर्देशों को लोगो की भागीदारी प्राप्त नहीं हो पाती। इसका मुख्य कारण उनको रचनात्मक तरीक़े से लागु करने में कमी होना है। कोरोना महामारी के सम्बंध में पारित दिशानिर्देशों को रचनात्मक तरीके से लोगो तक पहुंचना और लोगों को उनके प्रति ज़िम्मेदारी का अहसास करवाना हमारा उद्देश्य है। जिसके लिए हमारे द्वारा अत्यंत सरल परंतु रचनात्मक तरीक़ों का इस्तेमाल किया जाता हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों के माता पिता द्वारा बच्चो को मास्क नहीं पहनांने का प्रमुख कारण जागरूकता की कमी तथा मास्क की अनुपलब्धता है। संस्था द्वारा ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए हर स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। संस्था कोरोना के प्रकोप के बाद से ग्रामीण एवं वनवासी क्षेत्रों में साबुन,मास्क और फेस शील्ड वितरित कर रही हैं। लेकिन फिर भी बच्चे मास्क नहीं पहन रहे हैं।
इस समस्या के लिए संस्था ने बच्चों के लिए विशेष मास्क तैयार करवाए है। जो बच्चों को पसंद आ रहे है एवं वो खुद ही मास्क पहनने लिए उत्साहित है।
मै भारत की क्रीएटिव डायरेक्टर ख़ुशबू शर्मा ने बताया "ऐडिंग कलर्स टू लाइफ" अर्थात "जीवन में रंगो का साथ” हमारी संस्था का ध्येय वाक्य है । बच्चो को संक्रमण से बचाने और समस्या की गंभीरता को देखते हुए, हमने विभिन्न कार्टून करैक्टर जैसे छोटा भीम, मोगली, बेन्टन, फैंटम, मोटू पतलू, टॉम एंड जेरी आदि के रचनात्मक 50 तरह के मास्क तैयार किये है। इन मास्क में कोरोना को भगाने का संदेश अंकित है। बच्चो को उनके पसंदीदा कार्टून करैक्टर के मास्क वितरित किये गए हैं। बच्चे अब मास्क लगाने के लिए उत्साहित और खुश है।
लॉकडाउन के कारण लोगों के पास स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच आसान नहीं है। इसलिए हमने बच्चों के लिए कार्टून वाले मास्क के अलावा, दिल का दौरा, स्ट्रोक, ट्रॉमा, सीपीआर और अन्य आपातकाल के दौरान बरती जाने वाली सावधनियां, विभिन्न कानूनों और सरकार के निर्देशों के मैसेज वाले पिक्टोग्राम, सिंटोन के 5500 मास्क भी बनाए हैं।
संगठन के पदाधिकारी रजनीकांत सोलंकी ने कहा कि कोरोंना के प्रति आम जन को जागरूक करने, कोरोना वारियर्स को सम्मान देने के लिए संस्था द्वारा ग्रामीण एवं वनवासियों से जागरूकता पोस्टर बनवाये जा रहे है। जिसके लिए आवश्यक सामग्री जैसे शीट्स, कलर आदि संस्था द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही है। उक्त पोस्टर् को विभिन्न गावों सहित शहरी क्षेत्र में सार्वजनिक स्थानो पर लगाया गया हैं। तथा विभिन्न प्रकार के 9000 जागरूकता मास्क बनवाए है जो जनता में संस्था एवं पुलिस द्वारा वितरित किए जा रहे है।
हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि लोग मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग की अनिवार्यता को समझे । इसके लिए हमने राजस्थान के विभिन्न ग्रीन ज़ोन वाले शहरों में जिसमें सिरोही शामिल है और विभिन्न राजमार्गों पर लोगों को लॉकडाउन के बाद मिली छूट के उचित उपयोग एवम् जागरूक करने के लिए फ़िल्मी डायलोंग ओर संदेश जनित होर्डिंग लगाए गए हैं।