सिरोही शहर की सिरणवा पहाड़ी में बना मातर माता मंदिर का गौरवशाली इतिहास
सिरोही ब्यूरो न्यूज़
रिपोर्ट किशन माली
शहर की सिरणवा पहाड़ी में बना मातर माता मंदिर गौरवशाली इतिहास का साक्षी है। मंदिर के चारों तरफ हरियाली व पहाड़ी की गुफा में बिराजमान माता का अलग ही चमत्कार है। पहाडिय़ों से बहते झरने शहरवासियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। यहां जिलेभर के श्रद्धालु नवरात्र में आते हैं। शहर में मातर माता के तीन मंदिर हैं। एक तो पहाड़ी के शीर्षक पर जहां पर माता ने राजा को चमत्कार दिखाया था। दूसरा मंदिर नयावास से थोड़ा आगे पहाड़ी की गोद में बना हुआ है जहां पर गरबा महोत्सव होता है। श्रद्धालु देर रात तक डांडिया नृत्य करते हैं। नवरात्र में माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। तीसरा मंदिर छोटा सा छीपाओली में है जहां माता का जन्म हुआ था। जो श्रद्धालु माउंट में अर्बुदा माता के दर्शन के लिए जाते हैं वो मातर माता जरूर आते हैं। दंत कथा के अनुसार मातर माता का जन्म 1228 में प्रेमाराम छीपा गोत्र सोलंकी भावसार के घर छीपाओली में हुआ था। बचपन का नाम मोनी देवी था। प्रेमाराम अर्बुदा माता के भक्त थे। प्रत्येक महीने माता के दर्शन करने माउंट आबू जाते थे। एक दिन माता के दर्शन के लिए घर से रवाना हो रहे थे तो सामने से आ रहे लोगों ने उनका शगुन लेना उचित नहीं समझा क्योंकि उनके संतान नहीं थी। यह बात सुन कर प्रेमाराम को दुख हुआ। प्रेमाराम ने अर्बुदा माता के चरणों में नत मस्तक होकर याचना की कि मां अब मैं बूढ़ा हो गया हूं, इसलिए में दर्शन के लिए अब नहीं आ सकता हूं। अर्बुदा माता ने अंतरात्मा से कहा कि अब तू मत आना, मैं तेरे घर आऊंगी।
कुछ समय बीत जाने के बाद प्रेमाराम के घर कन्या का जन्म हुआ। धीरे-धीरे कन्या बड़ी होती गई।छीपाओली में हमेशा सहेलियों के साथ खेलती थी। एक दिन राजा की सवारी छीपाओली से निकल रही थी। मोनी देवी रास्ते में ही खेल रही थी। राजा ने रास्ते से हटने के लिए कहा पर मोनी नहीं हटी, ऐसे में राजा ने जबरन रास्ते से हटवाया।मोनी देवी ने घोड़े के पीछे से हाथ का थापा मार दिया। सवारी राजा के महल में चली गई। वहां जाकर देखा कि घोड़े पर कुंकुम का थापा किसने मारा। इसके बाद राजा ने मोनी देवी व प्रेमराम को महल में बुलाया।मोनी देवी ने सिरणवा की पहाड़ी पर जाकर गुफा में राजा को मातर माता के रूप में चमत्कार दिखाया। उन्होंने बताया कि सिरोही में छीपा समाज की बेटी जिसके चार माता-पिता (अर्थात कन्या के माता-पिता, सास-ससुर जीवित होंगे) तीरंजरी अंगुली से खून निकालकर राजा का राज तिलक करेगी। यह परम्परा आज भी चल रही है। अब तक 37 राजाओं का राज तिलक हो चुका है।इसके बाद में पहाड़ी में राजा ने भव्य मंदिर बनाया। वहां पर छीपासमाज की धर्मशाल भी है जहां पर चैत्र शुद्ध चौदस को समाज का मेला भरता है। यह जानकारी नामदेव समाज महासंघ के अध्यक्ष हंजारीमल छीपा, उपाध्यक्ष रामलाल, सचिव राजेश कुमार ने दी।