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भगवान की परीक्षा में शत प्रतिशत परिणाम चाहिए: स्वामी 

- तीन दिवसीय सत्संग पारायण संपन्न 

सिरोही ब्यूरो न्यूज़

संयोजक (हरीश दवे)

शहर के अनादरा चैराहा स्थित स्वामिनारायण मंदिर में तीन दिवसीय सत्संग पारायण धूमधाम से संपन्न हुई। कार्यक्रम के दौरान बीएपीएस संस्था के विद्वान संतों ने कथामृत का लाभ देकर लोगों को कृतार्थ किया। मंदिर के सभागृह में 22 अगस्त को शुरू हुई इस पारायण के पहले दिन श्रोताओं की भारी भीड़ उमड़ी। वहीं मंत्रमुग्ध हुए श्रोताओं को सारंगपुर से आए आदर्ष पुरूश स्वामी ने जीवन को हमेशा सुखदायी बनाने का मार्ग बताया। उन्होंने बताया कि भगवान जो कुछ करते है वो हमारे अच्छे के लिए करते है। उन्होंने कहा कि परीक्षा उसीकी होती है जो पढ़ता है। इसलिए भगवान को प्राप्त करना है तो परीक्षा देनी ही पड़ेगी। विद्यालय की परीक्षा में कम अंक आए तो चलता है, लेकिन भगवान की परीक्षा में तो शत प्रतिशत अंक लाने पड़ते है, तभी भगवान प्रसन्न होते है।

इस तरह स्वामी ने जीवन को आनंदमयी बनाने के लिए अलग-अलग दृष्टांत देकर मर्म समझाया। साथ ही युवकों ने कीर्तन गाकर भगवान की लीला को बताया। वहीं जयपुर मंदिर से पधारे परममुनि स्वामी ने तीन दिवसीय पारायण के विषय को विस्तारपूर्वक बताया। उन्होंने बताया कि भक्त तो बहुत हुए है लेकिन जिन भक्तों ने भगवान के पास स्थाई जगह बनाई है, उनसे हमें कुछ सीखने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि मीराबाई, नृसिंह मेहता जैसे भगवान स्वामिनारायण के समय लालजी सुथार हुए, उन्होंने भगवान से दीक्षा लेकर आजीवन उनके साथ रहने का संकल्प किया था। उन्हें दीक्षा देकर साधु निष्कुलानंद नाम रखा था। इस तरह स्वामीजी ने तीन दिवसीय पारायण के विशय को विस्तार पूर्वक बताया।


पारायण के दूसरे दिन व्यासपीठ पर बैठे आदर्श पुरूष स्वामी ने निष्कुलानंद स्वामी के आख्यान पर प्रकाश डाला। इस दिन जन्माष्टमी होने के कारण संतों एवं कार्याकर्ताओं ने भगवान कृष्ण के उपर आधारित कीर्तन, कथा एवं वीडियों से भगवान कृष्ण की लीला का गान किया।  इस दिन मंदिर प्रांगण में समूह आरती हुई, जिसमें भारी संख्या मंें लोगों ने मंदिर में बिराजमान देवस्वरूपों की आरती की। वहीं मंदिर में बैठे देवस्वरूपों की सजावट आकर्षण का केन्द्र बन रही थी।   पारायण के अंतिम दिन रविवार को जयपुर मंदिर के कोठारी राजेश्वर स्वामी ने विशेष कृथामृत का लाभ दिया एवं सत्संग की महिमा समझाई। तीन दिवसीय कार्यक्रम में महाप्रसादी की व्यवस्था भी की गई थी। इस तरह चातुर्मास पारायण में शहर समेत आसपास के सैकड़ों हरिभक्तोें ने सत्संग लाभ लेकर स्वयं को धन्यता की अनुभूति की।

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