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गौमाता की पूजा का पर्व बछ बारस, देता है संतान को लंबी उम्र और परिवार में खुशहाली, जानिए पौराणिक महत्व

सिरोही ब्यूरो न्यूज़

सिरोही में धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास में बछ बारस का पर्व मनाया जाता है। भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को पड़ने वाले इस उत्सव को ‘वत्स द्वादशी’ या ‘बछ बारस’के नाम से भी जाना जाता हैं। इस अवसर पर गाय और बछड़े की पूजा की जाती है।

इसको लेकर आज सिरोही के लीवनी चौक आयुर्वेदिक चौराहे पर राम मंदिर के पास और कई स्थानों पर गौमाता और उसके बच्चे की पूजा की गई



हमारे शास्त्रों में इसका माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि बछ बारस के दिन जिस घर की महिलाएं गौमाता का पूजन-अर्चन करती हैं। गाय को रोटी और हरा चारा खिलाकर तृप्त करती है, उस घर में मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है और उस परिवार में कभी भी कोई अकाल मृत्यु नहीं होती है।

पुराणों में गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कहीं गई है। पूज्यनीय गौमाता हमारी ऐसी मां है जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।



पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौमाता का दर्शन और पूजन किया था। जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। ऐसे गौमाता की रक्षा करना और उनका पूजन करना हर भारतवंशी का धर्म है।

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